प्रयागराज: धर्म परिवर्तन करने वालों को एससी/एसटी लाभ से वंचित करेगी हाईकोर्ट, सभी डीएम को चार माह में जांच के आदेश *FGHJ* #15
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एससी/एसटी लाभ केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए है। धर्म बदलने वाले हिंदू इस हक से वंचित हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को चार माह में ऐसी पहचान कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया। महाराजगंज के एक मामले में ईसाई बन चुके व्यक्ति की तीन माह में जांच का आदेश। यह फैसला संवैधानिक प्रावधानों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
हाईकोर्ट का कड़ा रुख: लाभ केवल मूल धर्मानुगामियों के लिए
इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण लाभ का दावा करने के लिए व्यक्ति को हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म का पालन करना आवश्यक है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के पैरा 3 के अनुसार, इन धर्मों से अलग कोई अन्य व्यक्ति इस श्रेणी का सदस्य नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने जोर दिया कि लाभ प्राप्ति के लिए धर्म परिवर्तन संविधान के साथ धोखा है, जो आरक्षण नीतियों के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि ऐसा कदम कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है।
महाराजगंज मामले की जांच: फर्जी दावों पर नकेल
मामला महाराजगंज जिले के निवासी जितेंद्र साहनी से जुड़ा है, जो मूल रूप से केवट समुदाय से हैं। उन्होंने ईसाई धर्म अपनाने के बाद पादरी बनकर कार्य करना शुरू कर दिया, लेकिन एससी/एसटी अधिनियम के तहत आवेदन दाखिल किया। हलफनामे में उन्होंने खुद को हिंदू बताया, जबकि पुलिस जांच में उल्टा सबूत सामने आए। उन पर हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने, जाति व्यवस्था का मजाक उड़ाने और गरीबों को लुभाकर धर्मांतरण कराने के आरोप हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए और 295-ए के तहत दर्ज एफआईआर को उन्होंने चुनौती दी थी। कोर्ट ने महाराजगंज के जिलाधिकारी को तीन माह में ऐसी घटनाओं की जांच पूरी करने का निर्देश दिया। यदि साहनी फर्जीवाड़े के दोषी पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।
राज्यव्यापी कार्रवाई: डीएमों पर चार माह की समयसीमा
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए कि वे चार माह के भीतर उन हिंदुओं की पहचान करें, जो धर्म परिवर्तन के बाद भी एससी/एसटी लाभ ले रहे हैं। ऐसी अनियमितताओं पर तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के 2025 के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें ईसाई बन चुके व्यक्ति को एससी लाभ से वंचित करने का निर्णय सुनाया गया था। इसके अलावा, केंद्रीय कैबिनेट सचिव और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एससी/एसटी मामलों व कानूनी प्रावधानों पर पुनर्विचार करने को कहा गया। अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के मुख्य सचिव को ओबीसी व एससी के बीच अंतर को सख्ती से लागू करने के लिए कदम उठाने का आदेश दिया गया। सभी डीएम अपनी कार्रवाई की रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपेंगे, ताकि संवैधानिक धोखाधड़ी रोकी जा सके। यह फैसला 3 दिसंबर 2025 को जारी हुआ, जो राज्य में आरक्षण व्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
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