नई दिल्ली: जस्टिस स्वामीनाथन के समर्थन में 56 पूर्व जज, महाभियोग प्रस्ताव को 'डराने की कोशिश' बताया *CVDO* #34
मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ 9 दिसंबर को विपक्षी सांसदों द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का देश के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने विरोध किया है। उन्होंने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला और जजों को डराने की कोशिश बताया। यह विवाद न्यायाधीश के 4 दिसंबर के एक फैसले के बाद शुरू हुआ, जिसमें मदुरै के सुब्रमण्यस्वामी मंदिर में दीप जलाने की अनुमति दी गई थी।
56 पूर्व न्यायाधीशों ने उठाई आवाज
देश के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का कड़ा विरोध जताया है। एक खुले पत्र में उन्होंने कहा कि यह कदम जजों पर राजनीतिक एवं वैचारिक दबाव बनाने और उन्हें डराने की कोशिश है। पूर्व न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि आज एक जज को निशाना बनाया जा रहा है, तो कल इसका असर पूरी न्यायपालिका पर पड़ सकता है।
महाभियोग प्रस्ताव का सिलसिला
यह मामला तब सामने आया जब 9 दिसंबर को इंडिया गठबंधन के 107 सांसदों ने जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया। इससे पहले, इन विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से भी इस संबंध में मुलाकात की थी। पूर्व न्यायाधीशों के अनुसार, महाभियोग जैसे गंभीर प्रावधान का इस्तेमाल जजों पर दबाव डालने या बदला लेने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
मंदिर-दरगाह मामला और फैसला
इस पूरे विवाद की शुरुआत जस्टिस स्वामीनाथन के एक फैसले से हुई। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने 4 दिसंबर को तिरुपरनकुंद्रम स्थित सुब्रमण्यस्वामी मंदिर से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए, मंदिर अधिकारियों को दूसरे पक्ष के विरोध के बावजूद दीपथून पर शाम 6 बजे तक दीपक जलाने की अनुमति दी थी। इस फैसले के बाद तमिलनाडु सरकार ने आदेश को लागू करने से इनकार कर दिया और कानून-व्यवस्था के खतरे का हवाला दिया।
विवाद की ऐतिहासिक जड़ें
तिरुपरनकुंद्रम, मदुरै से लगभग 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है और यह भगवान मुरुगन के प्रमुख स्थानों में से एक माना जाता है। यहां सुब्रमण्यस्वामी मंदिर का इतिहास छठी शताब्दी तक जाता है। पहाड़ी की चोटी पर कार्तिगई दीपम जलाने की लंबी परंपरा रही है। सत्रहवीं शताब्दी में निकट ही सिकंदर बधूषा दरगाह बनने के बाद से यह स्थान विवादों में रहा है। पूर्व न्यायाधीशों ने अपने पत्र में इमरजेंसी के दौरान न्यायपालिका के संघर्ष का भी जिक्र करते हुए, सभी संस्थानों से न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा की अपील की है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें