हेडलाइन: कुमाऊं: कृषि विवि ने विकसित की बेल, बेर और हल्दी की नई उन्नत किस्में *YSLX* #9
सारांश: आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय ने बेल (नरेंद्र बेल-17), बेर (नरेंद्र बेर-2) और हल्दी (नरेंद्र हल्दी-5) की तीन नई प्रजातियां विकसित की हैं। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 1 सितंबर 2025 को इन्हें अधिसूचित किया है। कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह ने वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी।
चलिए जानते हैं पूरी खबर
कुमाऊं क्षेत्र के किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने लंबे शोध के बाद फल और मसालों की तीन नई उन्नत किस्में विकसित की हैं। इन्हें भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने भी मान्यता दे दी है। इस उपलब्धि पर पूरे विश्वविद्यालय परिसर में खुशी का माहौल है।
क्या हैं ये नई प्रजातियां?
विश्वविद्यालय के उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय द्वारा विकसित इन प्रजातियों के नाम हैं - नरेंद्र बेल-17, नरेंद्र बेर-2 और नरेंद्र हल्दी-5। कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में हुई इस सफलता के लिए उन्होंने पूरी टीम को बधाई दी है।
आइए समझते हैं इनकी खासियतें
· नरेंद्र बेल-17: इसके फल का वजन 2 से 2.25 किलोग्राम तक होता है। फल की सतह चिकनी और गुदा हल्का पीला होता है। यह कम रेशे वाली और कम बीजों वाली किस्म है, जो मुरब्बा, जूस और कैंडी बनाने के लिए बेहतरीन है। एक पेड़ से 170-200 किलोग्राम तक पैदावार मिलती है और यह सिर्फ 3-4 साल में ही फल देने लगती है।
· नरेंद्र बेर-2: इसके फल का वजन 40-45 ग्राम तक होता है और यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। फल गोल आकार का और पकने पर हरा-पीला हो जाता है। इसके गूदे का रंग सफेद और मिठास ज्यादा होती है। एक पौधे से 100-120 किलोग्राम तक उपज मिल सकती है।
· नरेंद्र हल्दी-5: यह भी अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसकी पैदावार 350-370 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। इसके कंद बड़े आकार के होते हैं और इसमें करक्यूमिन की मात्र 4.3% से 5.2% तक पाई जाती है। यह पत्ती धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक क्षमता रखती है।
किनका रहा योगदान?
इस बड़ी उपलब्धि के पीछे वैज्ञानिकों की एक बड़ी टीम का योगदान रहा। बेल और बेर की प्रजातियों के विकास में डॉ. बिजेंद्र सिंह, डॉ. आर.के पाठक, डॉ. एच.के सिंह, डॉ. भानुप्रताप, डॉ. रत्नाकर दिवेदी, डॉ. संजय पाठक, नंदलाल शर्मा और ए.के श्रीवास्तव का मुख्य योगदान रहा।
वहीं, हल्दी की नई प्रजाति को विकसित करने में डॉ. प्रदीप कुमार, डॉ. सी.एन. राम, डॉ. वी.पी. पांडेय, डॉ. आर.एस. मिश्रा, डॉ. प्रवीन कुमार मौर्या और आर के गुप्ता ने अहम भूमिका निभाई। महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. भगवानदीन ने इसे विश्वविद्यालय के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया है।
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