मखाना खेती से पूर्वांचल के किसानों को नई राह, कृषि विवि में हुई सफल कटाई *WJAP* #45

मखाना खेती से पूर्वांचल के किसानों को नई राह, कृषि विवि में हुई सफल कटाई


सारांश: आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय में एक एकड़ के तीन तालाबों में जनवरी में बोए गए मखाने की आठ माह बाद कटाई हुई। कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह की मौजूदगी में इस सफल प्रयोग को पूर्वांचल के जलभराव वाले इलाकों के लिए वरदान बताया गया।

क्या हुआ है?


कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान मंत्री सूर्य प्रताप शाही और विश्वविद्यालय के कुलपति कर्नल (डॉ.) बिजेंद्र सिंह की मौजूदगी में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में मखाना की कटाई (हार्वेस्टिंग) का कार्यक्रम संपन्न हुआ। विश्वविद्यालय परिसर में एक एकड़ भूमि पर बने तीन तालाबों में आठ महीने पहले जनवरी में इसकी बुआई की गई थी।

मंत्री शाही ने क्या कहा?


इस मौके पर कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने इस पहल को पूर्वांचल के लिए एक प्रेरणादायक कदम बताया। उन्होंने कहा कि जल-जमाव वाले बंजर पड़े क्षेत्रों के लिए मखाना की खेती एक वरदान साबित होगी। उन्होंने इस सफल प्रयोग के लिए कुलपति और उनकी पूरी टीम को बधाई भी दी।

मखाना की खेती और कटाई की प्रक्रिया


कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह ने मखाने की खेती की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मखाने की कटाई तालाबों या करीब तीन फीट पानी भरे खेतों में की जाती है। बीज रोपने के लगभग छह महीने बाद पौधों में फूल आने लगते हैं और अक्टूबर-नवंबर तक फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। किसान अगस्त-सितंबर में लकड़ी की टोकरी की मदद से पानी से बीज निकालते हैं। इन बीजों को मसलकर, धूप में सुखाकर, छाँटकर और भुनाकर बाजार के लिए तैयार किया जाता है।

बिहार के विशेषज्ञ किसानों ने सिखाई तरकीब
इस कटाई के लिए दरभंगा, बिहार से विशेषज्ञ किसानों को बुलाया गया था, जिन्होंने हार्वेस्टिंग का प्रशिक्षण दिया। कुलपति ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और छात्रों को भी इसका प्रशिक्षण लेने के निर्देश दिए हैं ताकि यह ज्ञान स्थानीय किसानों तक पहुँच सके।

क्यों है यह अहम?
पूर्वांचल के बड़े इलाके में सालोंभर जल-जमाव की समस्या रहती है, जहाँ परंपरागत फसलें उगाना मुश्किल होता है। मखाना की खेती ऐसे ही जलभरे areas के लिए एक आदर्श विकल्प है, जो किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है और एक नई आर्थिक राह दिखा सकती है।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, वैज्ञानिक एवं कर्मचारी भी उपस्थित रहे।

टिप्पणियाँ