उत्तर प्रदेश: सरकारी स्कूलों के विलय के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिकाओं पर 3 जुलाई को सुनवाई, मायावती बोलीं- गरीब विरोधी, वापस लें #6 *OOW*
[सारांश:]
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों के विलय आदेश को लखनऊ हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। 3 जुलाई को सुनवाई होगी। याचिकाओं में कहा गया कि विलय मुफ्त शिक्षा अधिनियम का उल्लंघन है। 51 छात्रों ने आदेश को रद्द करने की मांग की। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे गरीब विरोधी बताया।
चलिए समझते हैं पूरा घटनाक्रम
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों के विलय आदेश को लखनऊ हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून को ऐसे स्कूलों को बंद कर उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मिलाने का आदेश जारी किया, जहां 10 से कम छात्र हैं। इसके खिलाफ सीतापुर के 51 बच्चों ने याचिका दायर की। एक अन्य याचिका में भी आदेश को गैरकानूनी बताया गया।
कोर्ट में क्या हुआ?
हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं पर 3 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की। राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थाई अधिवक्ता शैलेंद्र कुमार सिंह पेश हुए, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से डॉ. एलपी मिश्र और गौरव मेहरोत्रा ने पेश होकर तत्काल रोक की मांग की। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विलय से गरीब बच्चों को निकटवर्ती शिक्षा नहीं मिल पाएगी, जो मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम (आरटीई) का उल्लंघन है।
मायावती बोलीं: यह गरीब विरोधी फैसला
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने सरकारी स्कूलों के विलय को गरीब विरोधी करार दिया। उन्होंने एक्स (ट्विटर) पर कहा कि बेसिक शिक्षा परिषद का यह फैसला गरीबों के करोड़ों बच्चों के खिलाफ है। उन्होंने सरकार से आदेश वापस लेने की अपील की और चेतावनी दी कि बसपा सत्ता में आने पर इसे रद्द किया जाएगा।
क्यों है मामला महत्वपूर्ण?
- छात्र संख्या का मापदंड: यूपी में करीब 2.5 लाख प्राथमिक स्कूल हैं, जिनमें से हजारों की छात्र संख्या 10 से कम है।
- ग्रामीण प्रभाव: विलय से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा तक पहुंच प्रभावित हो सकती है, जहां दूरी एक बड़ी बाधा है।
- कानूनी तर्क: याचिकाकर्ताओं का दावा है कि आरटीई अधिनियम के तहत हर बच्चे को घर के पास स्कूल मिलना चाहिए, लेकिन विलय से यह सुविधा छिन जाएगी।
सरकार की तरफ से क्या तर्क?
हालांकि सरकार की ओर से अभी कोई विस्तृत बयान नहीं आया, लेकिन आदेश में कहा गया है कि छात्र संख्या के आधार पर स्कूलों का विलय करना संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए आवश्यक है। सरकार की ओर से अदालत में इस तर्क को दोहराने की संभावना है।
अगला कदम क्या?
3 जुलाई को हाईकोर्ट की सुनवाई में राज्य सरकार को अपनी व्याख्या देनी होगी। याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया जाएगा कि आदेश से शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। अगर कोर्ट याचिकाओं को मानता है, तो सरकार को विलय प्रक्रिया रोकनी पड़ सकती है।
क्या है आदेश का उद्देश्य?
बेसिक शिक्षा विभाग का कहना है कि छात्र संख्या के आधार पर स्कूलों का विलय करने से शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की समस्या कम होगी। हालांकि, विपक्ष और पैरेंट्स इसे गरीबों के खिलाफ फैसला मान रहे हैं।
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