कुमारगंज : सेना के जवानों ने सीखी जैविक खेती, बागवानी की बारीकियाँ #2 *KPO*

सारांश:

आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज के प्रसार निदेशालय ने सेना के जवानों के लिए कृषि व उद्यम प्रशिक्षण आयोजित किया। कुलपति कर्नल डॉ. बिजेंद्र सिंह के निर्देशन में प्रसार निदेशक डॉ. राम बटुक सिंह ने कहा—"सेवानिवृत्ति के बाद खेती में सफल हो सकते हैं जवान।" प्राकृतिक खेती, डेयरी प्रबंधन पर विशेषज्ञों डॉ. के.एम. सिंह, डॉ. एस.पी. सिंह, डॉ. अनिल कुमार ने जानकारी दी।


सेना के जवानों को खेती-किसानी का प्रशिक्षण

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज के प्रसार निदेशालय ने सेना के जवानों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया। इसका मकसद था—सैन्य कर्मियों को कृषि और कृषि आधारित उद्यमों की बारीकियाँ सिखाना। कुलपति कर्नल डॉ. बिजेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में आयोजित इस प्रशिक्षण में अयोध्या डोगरा रेजिमेंट सेंटर के चयनित जवानों ने हिस्सा लिया।

"सेवानिवृत्ति के बाद खेती बन सकती है नई मुहिम"

प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशक डॉ. राम बटुक सिंह ने जवानों को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा—"सेना में आपका अनुशासित जीवन, देशभक्ति और समाजसेवा का जज्बा सेवानिवृत्ति के बाद खेती के क्षेत्र में सफलता दिला सकता है। आप स्वरोजगार अपनाकर दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा बन सकते हैं।"

विशेषज्ञों ने सिखाई जैविक खेती की तकनीक

प्रशिक्षण के दौरान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जवानों को कृषि की आधुनिक विधियों से रूबरू कराया:

  • डॉ. अनिल कुमार (प्रसार निदेशालय) और डॉ. एस.पी. सिंह (डेयरी प्रक्षेत्र प्रभारी) ने प्राकृतिक व जैविक खेती के गुर समझाए।
  • डॉ. के.एम. सिंह (वरिष्ठ प्रसार अधिकारी) ने आधुनिक कृषि तकनीकों पर विस्तृत चर्चा की।

खेतों का भ्रमण कर जाना हाथों-हाथ अनुभव

प्रशिक्षणार्थी जवानों ने विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रक्षेत्रों का दौरा किया। इसमें प्राकृतिक खेती का प्रयोगशाला, डेयरी फार्म, सब्जी व फलों के बागान, और क्रीड़ा प्रक्षेत्र शामिल थे। इन भ्रमणों के जरिए जवानों ने कृषि प्रबंधन की प्रैक्टिकल जानकारी हासिल की।

क्यों महत्वपूर्ण है यह पहल?

सेना से रिटायरमेंट के बाद जवानों के पास सीमित करियर विकल्प होते हैं। ऐसे में कृषि प्रशिक्षण उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का रास्ता खोलता है। विश्वविद्यालय का यह कार्यक्रम न केवल जवानों के भविष्य को संवारेगा, बल्कि देश में जैविक खेती को भी बढ़ावा देगा।

अंतिम बात:
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम सेना और कृषि शिक्षा के बीच एक नए सहयोग की शुरुआत है। विश्वविद्यालय ने घोषणा की है कि भविष्य में ऐसे और सैन्य-किसान संवाद आयोजित किए जाएंगे।

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