DBUP, अयोध्या : निजी स्कूलों की मनमानी - फीस लूट और शिक्षा की हकीकत पर विशेष पड़ताल #17 *DFWE*
अब देखते हैं, इस पड़ताल में क्या-क्या सामने आया।
मनमानी फीस से त्रस्त अभिभावक – “हम दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा पा रहे”
सर्वे में पाया गया कि अयोध्या के कई निजी स्कूलों में मासिक फीस 3600 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक पहुंच चुकी है, जबकि एडमिशन फीस के नाम पर औसतन 7000 रुपये वसूले जा रहे हैं।
📌 "हम दो बच्चों को पढ़ा रहे हैं, हर महीने 8,000 रुपये से अधिक फीस देनी पड़ रही है। ऊपर से किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य खर्च अलग हैं। यह किस तरह का शिक्षा तंत्र है?" – कुमारगंज के एक चर्चित CBSE स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ा रहे राजेश पांडे (बदला हुआ नाम)।
कई अभिभावकों ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि आखिर फीस बढ़ाने के बावजूद स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता क्यों नहीं सुधर रही?
“मोटी फीस भी दे रहे, फिर भी ट्यूशन लगवाने की जरूरत पड़ रही”
कई अभिभावकों का कहना था कि वे अपनी मेहनत की कमाई फीस में दे रहे हैं, लेकिन स्कूलों में पढ़ाई का स्तर ऐसा है कि फिर भी बच्चों को ट्यूशन भेजना पड़ रहा है।
📌 "हम चाहते हैं कि बच्चे को स्कूल में ही बेहतर शिक्षा मिले, लेकिन स्कूल सिर्फ पैसे ऐंठने में लगे हैं। स्कूल फीस बढ़ा रहे हैं, फिर भी पढ़ाई कमजोर है। मजबूरी में ट्यूशन करवा रहे हैं।" – मिल्कीपुर कुमारगंज में मौजूद जिला प्रसिद्ध सीबीएसई स्कूल में पढ़ रहे छात्र के पिता सुरेश वर्मा (बदला हुआ नाम)।
सवाल उठता है – जब स्कूल की फीस इतनी ज्यादा है, तो ट्यूशन की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या यह शिक्षा के नाम पर सिर्फ मुनाफा कमाने का धंधा बन चुका है?
बकाया फीस नहीं भरी तो बच्चों को अपमानित किया जाता है?
सर्वे में यह भी सामने आया कि जिन अभिभावकों की फीस समय पर जमा नहीं होती, उनके बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें असेंबली में अलग खड़ा कर दिया जाता है, कक्षाओं से बाहर कर दिया जाता है या फिर विशेष आयोजनों से दूर रखा जाता है।
📌 "हम फीस समय पर नहीं भर पाए, तो हमारे बच्चे को असेंबली में अलग खड़ा कर दिया गया। स्कूल प्रशासन को यह समझना चाहिए कि हम कोई चोरी नहीं कर रहे, मेहनत की कमाई से फीस दे रहे हैं।" – मिल्कीपुर बॉर्डर के चर्चित सीबीएसई स्कूल के छात्र के माता-पिता।
कुछ स्कूलों में तो यह भी देखने को मिला कि जब तक फीस पूरी नहीं दी जाती, तब तक रिपोर्ट कार्ड नहीं दिया जाता।
सवाल यह की यह शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं तो और क्या है?
आधुनिक टीचर्स को पसंद चापलूसी – शिक्षा से ज्यादा छवि बनाने में लगे छात्र
सर्वे के दौरान कई छात्रों ने बताया कि स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा टीचर्स की चापलूसी करने वालों को प्राथमिकता दी जाती है। जो छात्र शिक्षकों की तारीफ करते हैं या हर बात से सहमत रहते हैं, उन्हें अच्छे नंबर, प्रेजेंटेशन और कक्षा में बाकी छात्रों के सामने अधिक फेवर मिलते हैं।
📌 "हम स्कूल पढ़ने जाते हैं, लेकिन यहां पढ़ाई से ज्यादा इम्पोर्टेंस 'टीचर्स से तालमेल' को दी जाती है। जो छात्र शिक्षकों की चापलूसी करते हैं, उन्हें क्लास में ज्यादा महत्व दिया जाता है।" – कुमारगंज में मौजूद सीबीएसई स्कूल में 11वीं बायोलॉजी में पढ़ रहे एक छात्र।
सवाल जरूर है क्या यही है आधुनिक शिक्षा का नया स्वरूप? विद्यालय शिक्षा के लिए है या फिर अपना पर्सनल ब्रांड बनाने के लिए?
यह भी पता चला कि कई शिक्षक उन बच्चों को अधिक महत्व देते हैं जो उनकी चापलूसी करें एवं उनके द्वारा पढ़ाई जा रहे कोचिंग संस्थान में भी कोचिंग पढ़ने लगे - ऐसे छात्रों को कई बार विद्यालय में कराए जा रहे हैं मासिक एग्जाम में आने वाले सवालों के बारे में थोड़े बहुत संकेत भी दे दिए जाते हैं ।
एडमिशन के वक्त किए जाते हैं वादे – फंसने के बाद की जाती है लूट
अभिभावकों ने बताया कि स्कूल एडमिशन के समय बड़े-बड़े वादे करते हैं – स्मार्ट क्लास, बेहतरीन टीचिंग, को-करीकुलर एक्टिविटी, एयर कंडीशनर सुविधा लेकिन एडमिशन के बाद असली खेल शुरू होता है।
📌 "एडमिशन के वक्त स्कूल कहते हैं कि सब कुछ मिलेगा। लेकिन एक बार बच्चा एडमिशन ले ले, फिर हर महीने नए-नए चार्ज लगते हैं – एग्जाम फीस, फंक्शन फीस, बोर्ड फीस, मेंटेनेंस फीस और न जाने किस-किस नाम से पैसे मांगे जाते हैं। इसके अलावा एडमिशन के वक्त बताया जाता है स्मार्ट क्लासेस चलेगी पर एडमिशन बाद स्मार्ट क्लास का नाम तक नहीं लिया जाता - यहां तक की बच्चे गर्मियों में एयर कंडीशनर यानी एसी की सुविधा पाने के लिए भी तरस जाते हैं" – कुमारगंज में मौजूद विद्यालय के एक परेशान माता-पिता एवं उनका बेटा।
क्या यह शिक्षा का नया व्यापार मॉडल बन गया है? एडमिशन से पहले बात ही पर एडमिशन के बाद सब कुछ भूल जाया जाता है ?
जब पढ़ाई का भरोसा नहीं – तो तीन महीने की फीस एडवांस क्यों?
सर्वे में सबसे ज्यादा शिकायत इस बात की आई कि स्कूल एडमिशन के समय तीन महीने की फीस एडवांस जमा करवा रहे हैं। जबकि पढ़ाई की क्वालिटी पर कोई भरोसा नहीं दिया जाता।
📌 "अगर पढ़ाई इतनी मजबूत होती, तो स्कूलों को एडवांस फीस लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती। लेकिन यहां पहले पैसा लीजिए, फिर जैसा भी पढ़ाई मिले, वो आपकी किस्मत। क्या ये सही है? अगर एडवांस फीस देने से मना करो तो एडमिशन से भी मना कर देते हैं या एडमिशन बाद अगर कभी फीस टाइम पर ना दे पाओ तो पहले से ही बच्चों को परेशान करने लगते हैं" – एक नाराज अभिभावक।
क्या शिक्षा सेवा है या फिर एक बिजनेस मॉडल, जहां पहले ग्राहक से पेमेंट ले ली जाती है और बाद में जो मिले, वो बोनस?
सरकारी स्कूल में पढ़ाने में होती है बेइज्जती – प्राइवेट में होती है लूट
हमारे समाज में एक धारणा बना दी गई है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाने से 'सोशल स्टेटस' कम हो जाता है। लोग सोचते हैं कि सरकारी स्कूल में पढ़ाने से बच्चा कमजोर हो जाएगा, इसलिए चाहे जितनी भी आर्थिक परेशानी हो, वे प्राइवेट स्कूलों में ही एडमिशन कराते हैं।
📌 "अगर हम सरकारी स्कूल में बच्चे को डालते हैं, तो लोग ताने मारते हैं। लेकिन जब प्राइवेट स्कूल में डालते हैं, तो वहां हर महीने नए-नए खर्चे आ जाते हैं। आखिर हम जाएं तो कहां?" – एक अभिभावक।
क्या यह सही है कि शिक्षा सिर्फ उन्हीं के लिए रह गई है जो मोटी फीस भर सकते हैं?
अब बस, छोटे बदलाव की जरूरत है!
देखिए, बदलाव कभी बड़े वादों से नहीं आते, छोटे फैसलों से आते हैं। हो सकता है कि स्कूल फीस में थोड़ी कटौती कर दें, बच्चों से फिजूल के चार्ज लेना बंद कर दें, टॉपर्स को सम्मान दें, जरूरतमंदों को मदद करें – और शायद इससे स्कूल मालिकों की मोटी कमाई में कुछ कमी आए।
लेकिन, बदले में क्या मिलेगा?
मिलेगी इज्जत, जो किसी भी दौलत से बड़ी होती है।
मिलेगा वो विश्वास, जो बच्चों के माता-पिता के दिल में हमेशा बना रहेगा।
मिलेगा वो प्यार, जो एक संस्थान को सिर्फ "बिजनेस" नहीं, बल्कि "परिवार" बनाता है।
एक छोटा फैसला, हजारों बच्चों की ज़िंदगी बदल सकता है।
यदि कोई भी विद्यालय निम्न महत्वपूर्ण सलाहों पर अमल करता है तो DBUP जिला स्तर पर उनका सामाजिक विज्ञापन करने के लिए तैयार है :
1. एक घर के दो / तीन बच्चे पढ़ने पर एक बच्चे की फीस में कुछ छूट दी जाए
2. टॉपर बच्चों को संभव स्कॉलरशिप दी जाए
3. औसत फीस 2500 से अधिकतम 3300 के बीच की जाए
4. यदि 1 से 2 माह तक फीस न जमा हो पाए तो छात्रों को अपमानित ना किया जाए
5. DBUP प्रदेश स्तर तक की प्रतियोगिताओं की जानकारी विद्यालय तक साझा करेगा - टैलेंटेड छात्रों को प्रदेश स्तर की निशुल्क प्रतियोगिताओं में भेजा जाए
अभिभावकों एवं छात्रों से अपील :
पर्याप्त जानकारी और आपके दिए हुए लिखित स्टेटमेंट के बावजूद हम किसी भी विद्यालयों का नाम सीधे तौर पर नहीं ले रहे हैं - क्योंकि हम नहीं चाहते कि हमारे कारण कोई भी विद्यालय अपमानित हो पर यह काम आप जरूर कर सकते हैं : कमेंट बॉक्स में खुलकर बताएं आपका बच्चा किस विद्यालय पर पढ़ रहा है क्या स्थिति है, शिक्षा का स्तर क्या है, एवं फीस वसूली के लिए क्या प्रक्रिया है - पूरा DBUP परिवार आपके साथ है ।
कल पार्ट 2 में :
पढ़ने की उम्र में युवाओं में मारपीट का ट्रेंड - थोड़ा नशा भी अछूता नहीं
छोटे विद्यालयों की बड़े विद्यालयों से कमीशन सेट
12वीं में बच्चे पास होने को तरसें - दसवीं की रिजल्ट से छवि बना रहे विद्यालय
बड़ी इमारत से पेरेंट्स ललचाए - बच्चे पढ़ाई को तरसे
अन्य टॉपिक आप कमेंट बॉक्स में बताएं वह भी जाएंगे जोडे ।
पार्ट 3 : पार्ट 3 में आपके दिए हुए सलाह आपके दिए हुए कमेंट एवं तमाम महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गहन विचार विमर्श करने के बाद हम निष्कर्ष देंगे कि आप अपने बच्चों के लिए अपने बजट के अनुसार बेहतरीन स्कूल कैसे चुने - क्या पहचान है क्या संकेत है क्या खेल चले जा रहे हैं इसके अलावा यदि कोई ऐसा विद्यालय मिला जो निस्वार्थ या कम स्वार्थ के भावना से बेहतरीन शिक्षा दे रहा हो तो हम उसके विषय में भी जरूर आर्टिकल देंगे पर हां किसी के दबाव में या फिर किसी अन्य कारण से किसी का भी विज्ञापन नहीं किया जाएगा ।
आप सभी के विश्वास और प्यार से ही DBUP India D. Media संस्थान लगातार आपको ईमानदार कवरेज दे रहा है और यदि आपका समर्थन मिलता रहा तो सदैव खबरें ऐसे ही मिलती रहेंगी ।
- इस आर्टिकल को लिखने में लगभग 15 लोगों की मदद ली गई है : सभी को मदद के लिए DBUP परिवार आभार व्यक्त करता है ।
जय हिंद जय भारत !
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