सुप्रीम कोर्ट: तेलंगाना सरकार को जाति आधारित आरक्षण सीमा बढ़ाने पर झटका, 50% लिमिट बरकरार #37 *GQW*


सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार के 50% से अधिक आरक्षण बढ़ाने के फैसले को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए गए प्रस्ताव को रेवंत रेड्डी सरकार ने चैलेंज किया था, लेकिन जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने अर्जी ठुकरा दी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जाति आधारित आरक्षण की 50 फीसदी की तय सीमा का उल्लंघन नहीं हो सकता।


आरक्षण सीमा पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जाति आधारित आरक्षण की 50 फीसदी की तय सीमा का उल्लंघन नहीं हो सकता। यह फैसला 1992 के इंदिरा साहनी केस के आधार पर लिया गया, जिसमें शीर्ष अदालत ने इसी सीमा का आदेश दिया था। तेलंगाना सरकार ने 42 फीसदी ओबीसी आरक्षण का नीतिगत निर्णय लिया था, जिससे कुल कोटा 67 फीसदी हो जाता। इस पर आपत्ति जताते हुए कई संगठनों और लोगों ने हाईकोर्ट में चैलेंज किया था। हाईकोर्ट ने प्रस्ताव खारिज कर अंतरिम रोक लगाई, जो अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अगले आदेश तक जारी रहेगी।

हाईकोर्ट की सुनवाई और सरकार की दलीलें

तेलंगाना सरकार ने अदालत में दलील दी कि 42 फीसदी ओबीसी आरक्षण से राज्य के पिछड़े वर्गों को स्थानीय निकायों में उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को 4 सप्ताह में जवाब देने का मौका दिया था। अब हाईकोर्ट की आगे की सुनवाई पर नजर टिकी है, जहां सरकार का जवाब और अदालत का रुख तय करेगा भविष्य का मार्ग। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर तेलंगाना सरकार की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

पूरा घटनाक्रम: हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक

मामला तब शुरू हुआ जब तेलंगाना सरकार ने आरक्षण सीमा बढ़ाने का प्रयास किया, जिसे हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। रेवंत रेड्डी सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां भी 50% लिमिट के सिद्धांत को बरकरार रखा गया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि इस सीमा का पालन अनिवार्य है। इस फैसले से राज्य में कुल 67% कोटा लागू नहीं हो सकेगा।

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