केंद्र सरकार की एडवाइजरी - 2 साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी की सिरप पर पूर्ण पाबंदी #8 *GHQ*
केंद्र सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण एडवाइजरी जारी की, जिसमें दो साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी-जुकाम की दवाओं या सिरप देने पर सख्त रोक लगा दी गई है। पांच साल तक के बच्चों में भी इन दवाओं का उपयोग केवल डॉक्टर की सलाह पर और सीमित मात्रा में ही अनुमत होगा। मंत्रालय का कहना है कि ज्यादातर मामलों में बच्चों की खांसी अपने आप ठीक हो जाती है, इसलिए घरेलू उपायों को प्राथमिकता दी जाए। यह कदम बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है, खासकर उन दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए जो बाजार में उपलब्ध हैं।
एडवाइजरी का पूरा ब्योरा: क्या कहती है केंद्र सरकार?
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके घर के छोटे-छोटे मेहमानों की मामूली खांसी भी एक बड़ा खतरा बन सकती है? स्वास्थ्य मंत्रालय की इस नई एडवाइजरी ने ठीक यही सवाल खड़ा कर दिया है। मंत्रालय ने सभी राज्यों के स्वास्थ्य अधिकारियों, अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) को निर्देश दिए हैं कि वे इस पर अमल सुनिश्चित करें। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- दो साल से कम उम्र के बच्चों पर पूर्ण रोक: इनकी खांसी-जुकाम की दवाएं बिल्कुल न दी जाएं। मंत्रालय का स्पष्ट कहना है कि ऐसी दवाओं का उपयोग इनकी नाजुक शारीरिक संरचना के लिए जोखिम भरा हो सकता है।
- पांच साल तक के बच्चों के लिए सीमित उपयोग: इनमें भी दवाओं का इस्तेमाल आमतौर पर न किया जाए। यदि जरूरी हो, तो डॉक्टर की क्लिनिकल जांच के बाद ही कम मात्रा, कम अवधि और बिना अनावश्यक कॉम्बिनेशन वाली दवाएं दी जाएं।
- सुरक्षित दवाओं पर जोर: सभी स्वास्थ्य संस्थानों को निर्देश है कि वे केवल गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) मानकों वाली दवाएं ही खरीदें और वितरित करें। दवा दुकानों को भी बच्चों को ऐसी दवाएं बेचने से रोका जाए।
यह एडवाइजरी आज (3 अक्टूबर 2025) दोपहर में जारी हुई, जब मौसम बदलाव के कारण खांसी-जुकाम के मामले बढ़ रहे हैं। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह कदम वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों की सिफारिशों और देश में हो रही घटनाओं के आकलन पर आधारित है। उदाहरण के लिए, हाल ही में राजस्थान में कफ सिरप के वितरण पर रोक लगाई गई थी, जहां चार साल से कम उम्र के बच्चों के लिए इनकी सुरक्षा पर सवाल उठे थे।
क्यों जरूरी है यह कदम? बच्चों की सेहत पर छिपे खतरे
बच्चों की खांसी को हल्के में न लें, लेकिन दवा भी हर बार समाधान नहीं। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर बच्चों में खांसी वायरल संक्रमण से होती है, जो बिना दवा के ही 7-10 दिनों में ठीक हो जाती है। फिर भी, बाजार में उपलब्ध कई सिरपों में मौजूद रसायन—जैसे एंटीहिस्टामाइन या डिकॉन्गेस्टेंट—छोटे बच्चों के लीवर, किडनी या हृदय पर बुरा असर डाल सकते हैं। पुरानी घटनाओं को याद करें, जैसे 2022 में कुछ कफ सिरपों में डाइएथिलीन ग्लाइकोल की मिलावट से कई बच्चों की जान चली गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी तब चेतावनी दी थी कि ऐसी दवाएं जहर की तरह घातक साबित हो सकती हैं।
भारत जैसे देश में, जहां ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की कमी है, माता-पिता अक्सर खुद दवा चुन लेते हैं। लेकिन अब यह एडवाइजरी एक जागरूकता का संदेश दे रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल दुष्प्रभावों की संख्या घटेगी, बल्कि एंटीबायोटिक्स के अनावश्यक उपयोग पर भी लगाम लगेगी, जो सुपरबग्स पैदा करने का बड़ा कारण है। राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आरएमएससीएल) ने भी हाल ही में सभी कफ सिरपों की जांच शुरू की है, जो इस एडवाइजरी को मजबूत बनाती है।
घरेलू उपाय: दवा से पहले अपनाएं ये आसान तरीके
तो, अगली बार जब आपका बच्चा खांसने लगे, तो दवा की बोतल उठाने से पहले रुकें। मंत्रालय ने घरेलू और गैर-दवा आधारित उपायों को प्राथमिकता देने पर जोर दिया है। कुछ सरल सुझाव:
- पर्याप्त तरल पदार्थ: गुनगुना पानी, हल्दी वाला दूध या शहद (लेकिन एक साल से ऊपर के लिए ही, क्योंकि शहद छोटे बच्चों के लिए जोखिम भरा हो सकता है)।
- आराम और हवा: बच्चे को पर्याप्त नींद दें और कमरे में नमी बनाए रखें—ह्यूमिडिफायर या गर्म पानी की भाप से।
- नाक की सफाई: नमक वाले पानी से नाक साफ करें, ताकि सांस लेना आसान हो।
- डॉक्टर से संपर्क: यदि बुखार 100.4°F से ऊपर हो, सांस लेने में तकलीफ हो या खांसी दो हफ्ते से ज्यादा चले, तो तुरंत चिकित्सक से मिलें।
ये उपाय न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि सस्ते भी। एक अध्ययन के मुताबिक, 80% बच्चों की खांसी बिना दवा के ही ठीक हो जाती है। माता-पिता के लिए यह एक बड़ा राहत का संदेश है—आपके घर में ही समाधान उपलब्ध है।
आगे का सफर: जागरूकता से मजबूत बनेगा स्वास्थ्य तंत्र
यह एडवाइजरी केवल एक कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि लाखों परिवारों के लिए एक सुरक्षा कवच है। लेकिन सफलता तभी मिलेगी, जब माता-पिता, डॉक्टर और दवा विक्रेता मिलकर इसे अपनाएं। सरकार को अब स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में जागरूकता कैंप लगाने चाहिए। याद रखें, बच्चों की सेहत हमारी साझा जिम्मेदारी है। यदि आपका कोई अनुभव या सवाल है, तो डॉक्टर से संपर्क करें—न कि इंटरनेट से। स्वस्थ बच्चे ही स्वस्थ भारत का आधार हैं।
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